|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *स्तुतिनीति* " ( २६७ )
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*श्लोक*------
" अद्यापि दुर्निवारं स्तुतिकन्या वहति कौमारम् ।
सद्भ्यो न रोचते साऽसन्तोऽप्यस्यै न रोचन्ते ।।
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*अर्थ*-----
स्तुति नाम की एक उपवर कन्या है ; उसके विवाह के लिए बहुत प्रयत्न किये गये । सृष्टि के प्रारंभ से आजतक प्रयत्न किये गये ।
पर उसका विवाह अभी तक नही हुआ वह अपरिहार्यता से अभी तक कुंवारी ही है । क्यों कि सज्जन लोगों को वह पसंद नही और दुर्जन उसे पसंद नही । ( ऐसा सतत चल रहा है )
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*गूढ़ार्थ*----
सुभाषितकार ने कितने सुन्दर तरीके से मनुष्य प्रवृत्ति पर भाष्य किया है । और मनुष्य की यह प्रवृत्ति सृष्टि के प्रारंभ से ही है ।
स्तुति पसंद रावण और दुर्योधन हमे पता ही है । जिन्हे स्तुति पसंद नही वह सज्जन उसे देखते भी नही और जो दुर्जन लोग स्तुति को पसंद करते है उन्हे स्तुति पसंद नही करती ।
श्रीरामदास स्वामी ने भी मूर्खों के लक्षणों में लिखा ही कि ------
" आत्मस्तुती करतो तो एक मूर्ख " ।
सुभाषितकार ने मनुष्य स्वभाव का मानसशास्त्र यहाँ पर बहुत सुन्दर तरीके से वर्णित किया है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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