|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *अन्तरालापाः* " ( २८४ )
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*श्लोक*----
" कः खे चरति ? रम्या का ? का जप्या ? किं विभूषणम् ?
को वन्द्यः? कीदृशी लङ्का ? वीरमर्कटकम्पिता ।।
( सूक्तिमुक्तावलिः-- जल्हण )
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*अर्थ*---
आकाश में कौन विहार करता है ? रमणीय कौन है ? जप किसका करना चाहिये? आभूषण कौनसा ? वन्दनीय कौन है ? और लङ्का कैसी है ? वीरमर्कटकम्पिता । यह है इसका उत्तर ।
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*गूढ़ार्थ*-----
आकाश में कौन विहार करता है ? -- विः= पक्षी ।
क्या रमणीय है ? -- रमा ।
जप किसका करना चाहिये? - ऋक् मतलब वेदों का ।
आभूषण कौनसा ? -- कटकम् मतलब बाहु का ।
वंदनीय कौन है ? -- पिता ।
लङ्का कैसी है ? -- वीर वानरों ने जिसे हिला डाला है ऐसी कम्पिता ।
अब सन्धिच्छेद करने के बाद---
विः = + रमा + ऋक + कटकम् + पिता । ऐसे पांच प्रश्नों के उत्तर हमे मिलते है और वीरमर्कटकम्पिता यह छठे प्रश्नों का उत्तर है ।
है न संस्कृत भाषा मजेदार और ज्ञान बढानेवाली ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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