धर्मस्य दुर्लभो ज्ञाता सम्यक् वक्ता ततोऽपि च
श्रोता ततोऽपि श्रद्धावान्कर्ता कोऽपि ततः सुधी:
भावार्थ -धर्म को जानने वाला दुर्लभ होता है, उसे श्रेष्ठ तरीके से बताने वाला उससे भी दुर्लभ, श्रद्धा से सुनने वाला उससे दुर्लभ, एवम् धर्म का जीवन में आचरण करने वाला सुबुद्धिमान, सदाचारी सबसे दुर्लभ है।
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