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" सुभाषितरसास्वादः "
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" संकीर्णसुभाषितः " ( २७८)
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श्लोक---
" किं कोकिलस्य विरुतेन गते वसन्ते ?
किं कातरस्य बहुशस्त्रपरिग्रहेण ? ।
मित्रेण किं व्यसनकालपराङमुखेन ?
किं जीवितेन पुरुषस्य निरक्षरेण ? ।।
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अर्थ---
वसंतॠतु निकल जाने के बाद कोकिल के गायन का क्या फायदा?
बहुत शस्त्र धारण करने पर भी कायर या डरपोक कैसे लडेगा ?
संकट के समय जो साथ नही देगा उस मित्र का क्या उपयोग ?
मनुष्य अगर विद्याविहीन अवस्था में जीवन जी रहा है तो उसके जीने का फल क्या ?
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गूढ़ार्थ----
सुभाषितकार ने कितने सुन्दर उदाहरणों से विद्या का जीवन में क्या महत्व है यह बताया है । अगर हम विद्या ग्रहण करेंगे तो ही हमे ज्ञान मिलेगा और ज्ञान मिलेगा तो हमे ईश्वर के प्रति भक्ति जगेगी और फिर हमे वह भक्ति ही मोक्ष प्राप्ति की ओर ले जायेगी ।
यहाँ एक ध्यान में रखने लायक बात यह है की , सुभाषितकार का उद्देश्य केवल पुस्तकी विद्या से नही है तो आत्मविद्या से है ।
शायद इस मामले हम भी विद्याविहीन ही कहलायेंगे ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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