Monday, November 12, 2018

Unquenchable desires-Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
           " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *सामान्यनीति* " ( २३८ )

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*श्लोक*----
 " धनेषु  जीवितव्येषु  स्त्रीषु  भोजनवृत्तिषु ।
अतृप्ता  मानवाः  सर्वे  याता  यास्यन्ति  यान्ति  च " ।।
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*अर्थ*---
  धनदौलत , जीवनावश्यक  वस्तु ,  स्त्रियां और  खान-पान  के  संदर्भ  में  मनुष्य  हमेशा  ही  असमाधानी  था , है  और  रहेगा ।
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*गूढ़ार्थ*-----
सुभाषितकार  ने  कितनी  सूक्ष्मता  से  मनुष्य  के  मानसिक  स्थिति  का  वर्णन  किया  है ।
सही  में  यह  त्रिकालाबाधित   सत्य  है ।  
पुरातन  काल  से  ही  मनुष्य  सदा  ही  अतृप्त  रहा  है ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे / नागपुर  महाराष्ट्र 
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