|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
-----------------------------------------------------------------------
" *सामान्यनीति* " ( २३८ )
-----------------------------------------------------------------------
*श्लोक*----
" धनेषु जीवितव्येषु स्त्रीषु भोजनवृत्तिषु ।
अतृप्ता मानवाः सर्वे याता यास्यन्ति यान्ति च " ।।
------------------------------------------------------------------
*अर्थ*---
धनदौलत , जीवनावश्यक वस्तु , स्त्रियां और खान-पान के संदर्भ में मनुष्य हमेशा ही असमाधानी था , है और रहेगा ।
----------------------------------------------------------------------------
*गूढ़ार्थ*-----
सुभाषितकार ने कितनी सूक्ष्मता से मनुष्य के मानसिक स्थिति का वर्णन किया है ।
सही में यह त्रिकालाबाधित सत्य है ।
पुरातन काल से ही मनुष्य सदा ही अतृप्त रहा है ।
-----------------------------------------------------------------
*卐卐ॐॐ卐卐*
--------------------------
डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
-------------------------------
🌻🍁🌻🍁🌻🍁🌻🍁🌻🍁🌻🍁🌻🍁
No comments:
Post a Comment