|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *घरट्टअन्योक्ति* " ( २५२ )
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*श्लोक*---
रे रे घरट्ट ! मा रोदीः ! कं कं न भ्रामयन्त्यमूः ! ।
कटाक्षेपमात्रेण ; कराकृष्टस्य का कथा ? ।। "
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*अर्थ*---
घरट्ट चक्की ( जात ) मत रोओं यह जो स्त्री है यह किस किस को नही घुमाती है ?
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*गूढ़ार्थ*---
पीसते समय पुरातन काल की हाथचक्की घू घूं ऐसा ध्वनी करती है।
इसपर सुभाषितकार ने स्त्रियों के आकर्षण का प्रभाव आरोपित किया है । सुभाषितकार चक्की को कह रहा है रो मत अपने हाथ से यह स्त्री किस किस को नही घुमाती है ? किस किसीको तो वह केवल नेत्रकटाक्ष से ही घायल कर देती है । ( मतलब नचाती है )
फिर जिसको हाथ से घुमाती है उनकी कथा तुमसे अलग थोडी ही होगी ?
किञ्चित व्यंग्यपूर्ण हास्योक्ती यहाँ पर अन्योक्ति द्वारा सुभाषितकार ने सूचित की है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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