|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *लक्ष्मीस्तुति* " ( २५६ )
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*श्लोक*----
" गोभिः क्रीडितवान् कृष्ण इति गोसमबुद्धिभिः ।
क्रीडत्यापि सा लक्ष्मीरहो ! देवी पतिव्रता ।।
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*अर्थ*--
कृष्ण गाय , बैल में खेला इसलिये उसकी पतिव्रता पत्नी लक्ष्मी
( पती जैसा ही करना इसलिए ) आज भी गाय , बैल इतनी बुद्धि वाले लोगों में ही रमती है ।
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*गूढ़ार्थ*---
सुभाषितकार ने यहाँ पर लक्ष्मी को अच्छा टोमणा दिया है । कृष्णावतार में भगवान विष्णु को गाय , बैल चराने के लिये ले जाने पडते थे और उनकी पतिव्रता पत्नी उनका ही अनुसरण करके गाय , बैल जैसे लोगों में रमती थी । कृष्णावतार तो समाप्त हो गया किन्तु पती का गाय और बौलों का प्रेम याद रखते हुए लक्ष्मी आज भी निर्बुद्ध लोगों पर कृपा करती है ।
विद्वान के उपर लक्ष्मी की कृपा नही रहती तो निर्बुद्ध पर लक्ष्मी की कृपा रहती है , यही सुभाषितकार ने हमे यहाँ पर बताया है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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