|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
-------------------------------------------------------------------------------------
" *पातुवः* " ( २२९ )
-----------------------------------------------------------------------------------
*श्लोक*----
" तव करकमलस्थां स्फटिकीमक्षमालां
नखकिरणविभिन्नां दाडिमीबीजबुद्धया
प्रतिकलमनुर्षन् येन कीरो निषिद्धः
स भवतु मम भूत्यै वाणि , ते मन्दहासः " ।।
--------------------------------------------------------------------------------------
*अर्थ*-----
हे शारदादेवी ! आपके कमलकोमल कर में जो स्फटिकमणी की माला है , उसपर आपके नाखुन की आरक्त कांती फैलने के कारण स्फटिकमणी अनार के दाने के जैसे प्रतीत हो रहे है । और स्फटिकमणी को अनार समझकर आगे आगे बढने वाले तोते को आपका मंद , मृदु हास रोक रहा है । यही मंद और मृदु हास्य मेरा कल्याण करे !
---------------------------------------------------------------------------------------
*गूढ़ार्थ*-----
इस श्लोक में मनोरम रंगविलास दृष्टिगोचर हो रहा है । शारदा देवी के हाथ में स्फटिकमणी की माला है और उसका गौरवर्णीय अंगुलियो पर के नाखून लाल रंग के है । अनार समझकर तोते का धीरे धीरे आगे बढ़ना और फिर फसगत होना यह देखकर शारदा देवी मृदु और मंद मंद मुस्कुरा रही है । शारदा देवी के स्मितहास्य के कारण उसकी शुभ्रदंतपंक्ति और उसके विलग हुए लाल होंठ उन होठों की छाया दंतपंक्ति पर पडने के कारण वहां पर भी अनार का आभास होने लगा जिसके कारण तोता भ्रमित हो गया । इसलिये उसने अक्षमाला के तरफ बढते कदम रोक लिये ।
कितना सुन्दर कल्पनाविलास सुभाषितकार ने किया है न ?
---------------------------------------------------------------------------------------
*卐卐ॐॐ卐卐*
--------------------------
डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
-----------------------------------------
⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘
No comments:
Post a Comment