|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *सामान्यनीति* " ( १९७ )
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*श्लोक*---
" द्वयक्षरस तु भवेन् मृत्युस् त्र्यक्षरं ब्रह्म शाश्वतम् ।
ममं इतिच भवेन मृत्युर ' न मम ' इतिचशाश्वतम् ।। "
( महाभारत शांतिपर्व अ. १३ )
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*अर्थ*----
महाभारत के युद्ध के बाद शोकग्रस्त होकर वन में जाने का विचार करनेवाले युधिष्ठिर को सहदेव कह रहा है -----
" मृत्यु यह दो अक्षरी है और शाश्वत ब्रह्म तीन अक्षरी है ।
" मम " मेरा कहा तो मृत्यु ही है और मेरा कुछ भी नही ऐसा कहा तो वह शाश्वत ब्रह्म है -- वही अमरत्व है ।
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*गूढ़ार्थ*------
जब मनुष्य मम कहने लगता है तब उसकी मृत्यु ही हो जाती है क्यों कि वह स्वार्थी बन जाता है । किन्तु मेरा कुछ भी नही यहाँ पर यह भाव जब उसके मन में जागता है तब वह शाश्वत ब्रह्म को अनायस ही प्राप्त करता है । क्यों कि तब वह स्वार्थत्याग करके अनायस ही अमरत्व को प्राप्त करता है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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