Friday, October 26, 2018

Samsaara - Sanskrit subhashitam

||ॐ||
"सुभाषित  रसास्वाद"( २१५)
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"संसारः"।
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श्लोक---
"संसारविषवृक्षस्य  द्वे  फले  ह्यमृतोपमे।
काव्यामृतरसास्वाद  आलापः  सज्जनैः सह"।।( हितोपदेशः।( नारायण पंडितः) )
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अर्थ----
सच  में  यह  जग  विषवृक्ष  के  समान  ही  है ।  किन्तु  इस  विषमय  संसार में  दो  फल  अमृत समान  है--  एक  तो  काव्यरस  का  आनंद  और  दूसरा  सज्जनों  के  साथ  मैत्री।
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गूढार्थ---
संसार  विषमय  है  किन्तु  काव्यरसानंद  और  सज्जन  ये  दोनो  अमृत  है  क्यों  की   इन  दोनो  के  साथ  रहने  से  हमे  कुछ ना  कुछ  उपदेश  जरूर प्राप्त  होता  है ।  जो  इस  विषमय  संसार  को  सहने  की  शक्ति  हमे  प्रदान  करता  है।
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डाॅ.  वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे / नागपुर  महाराष्ट्र 
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