||ॐ||
"सुभाषित रसास्वाद"( २१५)
-------------------------------------------------------------
"संसारः"।
-----------------------------------------------------------
श्लोक---
"संसारविषवृक्षस्य द्वे फले ह्यमृतोपमे।
काव्यामृतरसास्वाद आलापः सज्जनैः सह"।।( हितोपदेशः।( नारायण पंडितः) )
----------------------------------------------------------
अर्थ----
सच में यह जग विषवृक्ष के समान ही है । किन्तु इस विषमय संसार में दो फल अमृत समान है-- एक तो काव्यरस का आनंद और दूसरा सज्जनों के साथ मैत्री।
-------------------------------------------------------------------------
गूढार्थ---
संसार विषमय है किन्तु काव्यरसानंद और सज्जन ये दोनो अमृत है क्यों की इन दोनो के साथ रहने से हमे कुछ ना कुछ उपदेश जरूर प्राप्त होता है । जो इस विषमय संसार को सहने की शक्ति हमे प्रदान करता है।
------------------------------------------------------------------
卐卐ॐॐ卐卐
------------------------------
डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
----------------------------------------
No comments:
Post a Comment