|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
---------------------------------------------------------------------------------------
" *पातुवः* " ( २१६ )
--------------------------------------------------------------------------------------
*श्लोक*----
" धन्या केयं स्थिता शिरसि ते ? शशिकला , किन्नु नामैतदस्याः ?
नामैवास्यास्तदेतत्परिचितमपि वे विस्मृतं कस्य हेतोः ।
नारीं पृच्छामि , नेन्दुं , कथयतु विजया न प्रमाणं यदीन्दु
देंव्या निन्होतुमिच्छोरिति सुरसरितं शाठ्यमव्याद्विभोर्वः ।। "
-------------------------------------------------------------------------------------
*अर्थ*-----
पार्वती--- " यह कौन है जो आपके मस्तक पर विराजमान है ? "
शंकर---" यह तो शशिकला है । "
पार्वती---" उसका नाम क्या है ? "
शंकर---- "आपके परिचय का होकर भी कैसे भूल रही हो ? "
पार्वती----" मेरा प्रश्न शशिकला के लिये नही है ; उस स्त्री के बारे में है ? "
शंकर---" ठीक है । शशिकलापर विश्वास नही होगा तो विजया को कहने दो । "
इस तरह से पार्वती से सुरनदी को छिपाने का श्रीशिव का शठत्व हमारी रक्षा करे ।
------------------------------------------------------------------------------------
*गूढ़ार्थ*----
उपर के श्लोक में पार्वती ने शंकर के मस्तक पर विराजीत गङ्गा को उद्देश्य से प्रश्न किया । शंकर के ध्यान में आ गया लेकीन उसने शशिकला ऐसा उत्तर दिया । आगे पार्वती ने उसका नाम शशिकला है क्या ? ऐसा पूछा । शंकर ने आपकी परिचित होकर भी भूल गये ? ऐसा उल्टा ही कहा । पार्वती ने शशिकला का रुख़ फिरसे गङ्गा की तरफ करके पूछा , शशिकला के बारे में नही उस दूसरी स्त्री के बारे में पूछ रही हूँ ? ऐसा कह के गङ्गा की तरफ की दिशा स्पष्ट की ।
इसपर भी शंकर शशिकला पर विश्वास नही होगा तो विजया ( वहाँ पर स्थित कोई और स्त्री ) से पूछो ऐसा उत्तर दिया ।
ऐसा शठत्व शंकर ने अपनाया , वही हमारी रक्षा करे ।
" नारीं पृच्छामि " यह पार्वती के शब्दों पर पूरे श्लोक का अर्थ और सौंदर्य है । जो हमे अत्यंत आनंदित और उल्लासित करता है ।
---------------------------------------------------------------------------------------
*卐卐ॐॐ卐卐*
-----------------------------
डाॅ . वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
-----------------------------------
✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍🖊✍
शाठ्यम् (अवँ रक्षणे आशीर्लिङ्रूपम्) अव्यात् विभोः वः।
ReplyDelete