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"सुभाषित रसास्वाद"( २०४ )
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"परोपकार प्रशंसा"
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श्लोक---
" भवन्ति नम्रास्तरवः फलौद्गमैः
नवाम्बुभिर्भूमिविलाम्बिनो घनाः ।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृध्दिभिः
स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्"।।(भर्तृहरिशतकत्रयम्)
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अर्थ-- वृक्ष को फल आने के बाद वह नम्र हो जाते है ।(उनकी शाखायें नीचे की ओर झुक जाती है) मेघो में पानी भरने के बाद वह उतरकर भूमि के पास आ जाते है । सत्पुरुष भी ऐसे ही होते है। इनको समृद्धि प्राप्त हुई तो वे गर्विष्ठ नही बनते तो और भी नम्र हो जाते है। परोपकारी लोगों का स्वभाव भी ऐसा ही होता है वे परोपकार करने के बाद ज्यादा विनम्र होते है उन्हे कभी गर्व नही चढता।
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गूढ़ार्थ--" वृक्ष और मेघ जितने समृद्ध होते जाते है उतने ही वे झुक जाते है और झुकना नम्रता का प्रतीक है वैसे ही किसी को मदत करने के बाद सज्जन लोग विनम्रता से झुक जाते है उन्होने किये मदत का उन्हे कभी भी गर्व नही होता"।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे/ नागपुर महाराष्ट्र
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