|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *सामान्यनिति* " ( १९५ )
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*श्लोक*----
" धनानि भूमौ, पशवः च गोष्ठे, भार्या गृहद्वारि, जन स्मशाने ।
देह चितायां परलोकमार्गे कर्मानुगा गच्छति जीवः एकः ।। "
( सुभाषितरत्न )
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*अर्थ*----
जमिन में गाडा हुआ धन , गौशाला के पशु ( गुरेढोरे ), घर के द्वार खड़ी पत्नी, स्मशान में साथ आने वाले लोग और चिता पर लेटा हुआ देह यह सब छोडकर जीव अकेला ही अपने कर्मानुसार परलोक के प्रवास को जाता है ।
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*गूढ़ार्थ*----
कितना कड़वा सच या आईना हमे सुभाषितकार ने दिखाया है।
जिंदगी भर मनुष्य मेरा मेरा करते रहता है पर चिता पर तो उसका देह भी साथ नही देता उसके कर्मानुसार उसका परलोक का प्रवास शुरू होता है। भारतीय संस्कृति में अच्छे कर्म को अनन्यसाधारण महत्व है ही उसके साथ ही अहं छोडने के लिए भी हमारे सारे धर्मग्रन्थ और ऋषि-- मुनि बताते ही है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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