||ॐ||(१८२ )
"स्त्री विनश्यति रूपेण ब्राह्मणो राजसेवया।
गावो दूरप्रचारेण हिरण्यं लोभलिप्सया"।।
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अर्थ--" सुन्दर रूप के कारण स्त्री का नाश होता है, राजा की सेवा करने से ब्राह्मण का नाश होता है । घास चरते वक्त यदि गाय भटक जाती है तो वह नष्ट हो जाती है वैसे ही बार बार लोभ धरने से सोना नष्ट हो जाता है"।
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यहाँ पे सुभाषितकार ने स्पष्ट रूप से कहा है की स्त्री का सुन्दर होना उसके नाश का कारण बनता है , उदा. में हम सीता तथा द्रौपदी को देख सकते है।
ब्राह्मण अगर कर्तव्य से च्युत हो गया और वह राजा की सेवा में लग गया तो सत्य को भूलकर कार्य करता है, यहाँ पर हमे न्यायमूर्ति रामशास्त्री प्रभुणे का आदर्श रखना चाहिये या फिर समर्थ रामदासस्वामी।
गाय अगर घास के मोह मे अपने कबिले से बिछड़ जाती है तो कोई जानवर जरूर उसे खा लेता है ,यहाँ पर एकता का महत्व बताया गया है।
और आखरी पंक्ति मे अति लोभ या तृष्णा सभी कुछ नष्ट कर देती है यही बताया है जो हमे आज भी ध्यान रखना चाहिए ।
सुभाषित हमारी संस्कृति वह धरोहर है जो कम शब्दों में बड़ा गहन अर्थ बताती है।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
नागपुर महाराष्ट्र
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