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" *वन्देसंस्कृतमातरम्* "
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" *लौकिकन्यायकोशः* " ( १४७ )
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" *सुभगा-- भिक्षुन्यायः* "
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सुभगा इति भिक्षुः इति च पदद्वयम् । एतत् भवति चेदपि तयोः परस्परं विरोधः एव न तु अन्वयः एकदा एका सुभगा एकः भिक्षुः च एकदा एव एकस्य गृहं गत्वा आश्रय प्रार्थितवन्तौ । तदा तेन द्वयोः एकस्मै आश्रयः देयः इति मत्वा सुभगायै आश्रयः दत्तः एवं स्मृतत्यदिशास्त्राणि श्रुतिसहितानि चेदपि श्रुत्याधारितत्वात् प्रमाणानि भवन्ति । न केवलं मुनिप्रोक्तत्वात् ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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