|| *ॐ* ||
" *पुनश्चहरिॐ* "
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *कूटप्रश्नः* " ( १६५ )
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*श्लोक* ---
" उच्छिष्टं शिवनिर्माल्यं वमनं शवकर्पटम् ।
काकविष्ठासमुत्पन्नः पञ्चैतेऽतिपवित्रका " ।।
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*अर्थ*---
झूंठा पदार्थ , शरीर में का मलोत्सर्जन , उलटी और प्रेत पर का वस्त्र और कौए के विष्ठा से निर्माण हुआ पदार्थ यह पांच चीजे अपवित्र होकर भी अत्यंत पवित्र है । यह कैसा संभव है ?
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*गूढ़ार्थ* ----
दूध , गङ्गा , शहद , रेशमी वस्त्र और पीपल का पेड़ ये पांचों चीजें अत्यंत पवित्र मानी जाती है किन्तु यह अत्यंत अपवित्र चीजों से संबंधित है ।
सुभाषितकार ने जो बताया है उसका उपर - उपर अर्थ कुछ अलग निकलता है किन्तु गर्भित अर्थ देखने के बाद ---
दुध को यहाँ पर उच्छिष्ट इसलिये कहाँ गया है क्यों कि वह गाय के आंचल ( स्तन ) से बाहर निकलता है । गङ्गा का उगम शिव के जटा से है इसलिये वह शिवनिर्माल्य है । शहद मधुमक्खियों ने मुंह से बाहर निकाला रहता है इसलिए वह वमन ( उल्टी ) है । रेशमी वस्त्र
( शवकर्पट ) सोवळे के तौर पर पूजा के लिये लिया जाता है किन्तु वह रेशम के कीटक के मरने के बाद ही निर्माण होता है ।
और पीपल का पेड़ तो पुराणकाल से पवित्र माना जाता है किन्तु वह तो काकविष्ठा से निर्माण हुआ है ।
है न मजे की बात ?
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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