|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *आम्रफल -अन्योक्ति* " ( १३५ )
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*श्लोक*----
" आकर्ण्याम्रफलस्तुतिं जलमभूत्तन्नारिकेलान्तरं
प्रायःकण्टकितं तथैव पनसं जातं द्विधोर्वारुकम् ।
आस्तेऽधोमुखमेव कादलमगाद् द्राक्षाफलं क्षुद्रता
श्यामत्वं बत जाम्बवं गतोमहो मात्सर्यदोषादिह " ।।
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*अर्थ*---
आम की स्तुति सुनकर नारियल का ह्रदय का पानी - पानी हो गया।
कटहल के शरीर पर कांटे उग गये , तरबूज के दो टुकड़े हो गये।
केले का पेड नीचे झुक गया , और द्राक्ष संकोच के कारण छोटे होकर सिमट गये । मात्सर्य के कारण जामुन काले - काले हो गये ।
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*गूढ़ार्थ*-----
यहाँ पर खास कुछ अन्योक्ति नही है । केवल कवीकल्पना कृत वर्णन है । अर्थ निकलेगा तो इतना ही बस की---
सज्जन लोगों की महती सुनकर दुर्जन लोगों का बाकी फलों जैसा हाल हो गया ।
मात्र कवीकल्पना बहुत सुन्दर है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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