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" *वन्देसंस्कृतमातरम्* "
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" *लौकिकन्यायकोशः* " ( ११९ )
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" *भृङ्गकीटकन्यायः* "
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मृत्तिकातः कमपि कीटविशेषम् उपरि आनयति भृङ्गः। सर्वदा तस्य कीटस्य कर्णयोः झाङ्कारं कृत्वा तम् आत्मसदृशं करोति ।
एवं गुरुरपि सततोपदेशेन शिष्यम् आत्मसदृशं करोतीति भावः ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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