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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *सामान्यनीति* " ( १०२ )
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*श्लोक*----
" पात्रापात्रविवेकोऽस्ति धेनुपन्नगयोरिव ।
तृणात्संजायते क्षीरं क्षीरात्संजायतेः विषम् " ।। ( सुभाषितावली )
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*अर्थ*-----
पात्र और अपात्र व्यक्तिनुसार वह वह वस्तु पात्र या अपात्र होते है ।
इस बारे में गाय और सांप का उदाहरण देखने लायक है।
गाय घास खाती है तो उसका दूध बन जाता है । और सांप वही दूध पिता है , किन्तु उसका विष बन जाता है ।
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*गूढ़ार्थ*-----
दान हमेशा पात्र व्यक्ति को ही देना चाहिए तो ही उसे फायदा होकर वह अमृत उगलेगा । अपात्र व्यक्ति को कुछ भी मतलब दान या ज्ञान दिया तो वह विष ही उगलेगा। यहाँ पर सुभाषितकार ने हमे यह बात गाय और सांप के उदाहरण से बतायी है । अपात्र सांप को दूध दिया तो वह पवित्र दूध भी अपात्र ही हो जाता है और घास जैसी तुच्छ वस्तु अगर गाय को दी जाय तो गाय की पात्रतेनुसार उसका अमृतमय दूध बन जाता है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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