Tuesday, May 1, 2018

Dharma lakshanam in Manu smriti -Sanskrit

धृतिःक्षमा दमोsस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्।।(मनु०६/९२)
संतोष,क्षमा(अपकार करने पर भी अपकार न करना),दम(विकार का कारण होने पर भी मन में विकार न होना),अस्तेय(अन्याय से परधनादि को न ग्रहण करना),शौच(मृत्तिकाजलादि से देहशुद्धि),इन्द्रियनिग्रह(विषयों से इन्द्रियों का निवारण),धी(शास्त्रादिके तत्त्व का ज्ञान),विद्या(आत्मज्ञान),सत्य(यथार्थकथन)तथाअक्रोध(क्रोध का कारण होने पर भी क्रोध न करना)-ये दश धर्म के लक्षण  हैं।
इन दशगुणों के संवर्धन से मानव मानव बनता है।इनके अभाव में वह दानवता के पथ का पथिक होता है।विश्वकल्याणार्थ तथा आत्मशान्तिसुखार्थ भी इन सद्गुणों का सतत संवर्धन नितराम् अपेक्षित ही नहीं ,अपरिहार्य भी है। 
स्वजीवन में इन नैतिक गुणों के संधारण के विना  कोई भी मानव भौतिक- समुन्नति के चरम शिखर पर संस्थित  होकर भी  क्षणमात्र में धराशायी होसकता है।जयति धर्मः।
नमः शिवाय साम्बाय।
सुदिवसः सोमवासरः
 सर्वेषाम्।

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