जय श्रीकृष्ण
सुप्रभातम्
*नारायणपरा वेदा देवा नारायणाङ्गजाः ।*
*नारायणपरा लोका नारायणपरा मखाः ॥*
_वेद नारायण एक परायण हैं। देवता भी नारायण के ही अंगों में कल्पित हुए हैं और समस्त यज्ञ भी नारायण की प्रसन्नता के लिये ही हैं तथा उनसे जिन लोकों की प्राप्ति होती है, वे भी नारायण में ही कल्पित हैं ॥_
(श्रीमद्भागवत २/५/१५)
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