।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।
मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना
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मुण्डे मुण्डे* मतिर्भिन्ना कुण्डे कुण्डे नवं पयः।
जातौ जातौ नवाचाराः नवा वाणी मुखे मुखे ।।
–वायु पुराण
*"पिण्डे पिण्डे मतिः भिन्ना"(भिन्न पाठ)
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"भिन्न-भिन्न मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न मति (विचार) होती है, भिन्न-भिन्न सरोवर में भिन्न-भिन्न प्रकार का पानी होता है, भिन्न-भिन्न जाति के लोगों के भिन्न-भिन्न जीवनशैलियाँ (परम्परा, रीति-रिवाज) होती हैं और भिन्न-भिन्न मुखों से भिन्न-भिन्न वाणी निकलती है।"
अर्थात् जितने मनुष्य हैं, उतने विचार हैं। एक ही गांव के अंदर अलग-अलग कुएं के पानी का स्वाद अलग-अलग होता है। एक ही संस्कार के लिए अलग-अलग जातियों में अलग-अलग रिवाज होता है। एक ही घटना का बखान हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से करता है। इसमें आश्चर्य करने या बुरा मानने की जरूरत नहीं है।
–रमेशप्रसाद शुक्ल
– जय श्रीमन्नारायण।
अति उत्तम
ReplyDeleteBohot Hard ! bohot Hard !
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