Tuesday, November 16, 2021

Dharna alone stays- Sanskrit subhashitam

|| *ॐ*  ||
                " *सुभाषितरसास्वादः* "
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            " *चाणाक्यनीति* " ( २६३ )
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*श्लोक*----
    " चला  लक्ष्मीश्चलाः  प्राणाश्चले  जीवितमंदिरे ।
      चलाचले  च  संसारे  धर्म  एको  हि  निश्चलः " ।।
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*अर्थ*-----
इस  जग  में  लक्ष्मी  मतलब  धन  चंचल  है ।  हमारा  आयुष्य  और  प्राण  भी  चंचल  है ।  यह  सब  क्षणभंगुर  है ।  क्षण  में  नष्ट  होनेवाले  इस  संसार  केवल  एक  धर्म  ही  स्थिर  और  अविनाशी  है ।
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*गूढ़ार्थ*----
कितना  सही  और  सार्थक  सुभाषित  है  यह ।  पैसा  तो  हमेशा  ही  आता  जाता  रहता  है ।  हमारा  देह  और  प्राण  तो  कब  जायेंगे  इसका  किसीको  भी  अंदाजा  नही ।  किसीको  भी  अपनी  मृत्यु  पता  नही  चलती  है ।  यह  जगत  में  केवल  जिस  धर्म  में  हम  जन्मे  जिसका  नाम  हमे  मिला  और  जिस  धर्म  में  मरने  के  बाद  हमारा  अंतिम  संस्कार  किया  जायेगा  वही  धर्म  स्थिर  और  अविनाशी  है ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /   महाराष्ट्र 
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