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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *चाणाक्यनीति* " ( २६३ )
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*श्लोक*----
" चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चले जीवितमंदिरे ।
चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः " ।।
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*अर्थ*-----
इस जग में लक्ष्मी मतलब धन चंचल है । हमारा आयुष्य और प्राण भी चंचल है । यह सब क्षणभंगुर है । क्षण में नष्ट होनेवाले इस संसार केवल एक धर्म ही स्थिर और अविनाशी है ।
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*गूढ़ार्थ*----
कितना सही और सार्थक सुभाषित है यह । पैसा तो हमेशा ही आता जाता रहता है । हमारा देह और प्राण तो कब जायेंगे इसका किसीको भी अंदाजा नही । किसीको भी अपनी मृत्यु पता नही चलती है । यह जगत में केवल जिस धर्म में हम जन्मे जिसका नाम हमे मिला और जिस धर्म में मरने के बाद हमारा अंतिम संस्कार किया जायेगा वही धर्म स्थिर और अविनाशी है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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