|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *अन्तरालापाः* " ( २९२)
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*श्लोक*----
" का शैलपुत्री किमु नेत्ररम्यं शुकार्भकः किं कुरुते फलानि ।
मोक्षस्य दाता स्मरणेन को वा गौरीमुखं चुम्बति वासुदेवः ।। "
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*अर्थ*----
पर्वत की कन्या कौन ? नेत्र को रमणीय ऐसा क्या है ? तोते का पिल्लू फल को क्या करता है ? केवल स्मरणसे मोक्ष देनेवाला कौन है ? इन चारो प्रश्नों के उत्तर चौथे चरण में है । और उसका स्वतंत्र अर्थ ऐसा निकल रहा है कि , वासुदेव पार्वती के मुख का चुम्बन ले रहा है । यह अर्थ तो भलता ही हो गया ।
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*गूढ़ार्थ*-----
१- पर्वत की कन्या-- पार्वती ( गौरी )।
२-- ऑखों को रमणीय क्या -- सुन्दर मुख ।
३--- तोते का पिला फल को क्या करता है --- चोंच से धीरे-धीरे खाता है ( चुम्बति )।
४---- केवल स्मरणसे मोक्ष देनेवाला कौन है--- वासुदेवः( श्रीकृष्ण )
अब चौथा चरण पुरा हो गया ।
हमारे सुभाषितकार की कमाल है न ?
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डाॅ . वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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