*६८० . ।। धर्मवित् ।।*
*चत्वारि यस्य द्वाराणि*
*सुगुप्तान्यमरोत्तमाः ।*
*उपस्थमुदरं हस्तौ*
*वाक्चतुर्थी स धर्मवित् ॥*
जो मनुष्य आपले उपस्थ , उदर , दोन्ही हात व वाणी ही चार द्वारें नियंत्रणात ठेवतो तोच धर्म जाणणारा होय .
जिस पुरुष के उपस्थ , उदर , दोनों हाथ और वाणी ये चारों द्वार सुरक्षित होते हैं , वही धर्मज्ञ हैं ।
A person who keeps his genitals , stomach , both the hands and speech in control , is the man who knows _Dharma_.
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