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|| सुभाषित रसास्वादः || [३४१]
'' स्थानमहिमा ''
'' किंचिदाश्रयसंयोगाध्दत्ते शोभागसाध्वपि |
कान्ता विलोचने न्यस्तं मलीमसमिवाञ्जनम् ||''
अर्थ—काजल मलिन [काला] होता है, परन्तु सुंदर स्त्री की आँखों में लगाने से उसकी शोभा बढती है, उसी प्रकार खराब वस्तु भी श्रेष्ट वस्तु का आश्रय लेता है, तो उत्तम शोभा धारण करता है |
गूढार्थ—सुन्दरी के नेत्रों में विराजमान काजल नेत्रों की शोभा बढाता है किन्तु वही काजल हाथ या अन्यत्र लग जाता है तो चिढ़ सी होती है| स्थानमहात्म्य ऐसा ही होता है |
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डॉ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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