|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *बुद्धि* " ( १३८ )
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*श्लोक*---
" उदीरितोऽर्थः पशुनाऽपि गृह्यते
हयाश्च नागाश्च वहन्ति नोदिताः ।
अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः
परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः ।।
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*अर्थ*----
मुँह से बोला गया अर्थ पशू भी धारण कर लेते है ।
छडी के मार से घोड़े और हाथी भी भार वहन कर लेते है । किन्तु सुज्ञ ही हमेशा दूसरे के मन की अनकही बात भी जान लेते है ।
यही तो सच्ची बुद्धि का फल है ।
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*गूढ़ार्थ*----
मुँह से बोला गया शब्द का अर्थ तो पशु भी ग्रहण कर लेते है ।
हकालने के बाद घोड़े और हाथी भी भार वहन कर लेते है लेकीन मनुष्य को तो भगवान ने बुद्धि दी है और उसमें भी सुज्ञ वही कहालेयेगा जो सामने वाले की मन की बात बिना कहे ही जान लेगा। तब भी कहेंगे उसके पास पक्व और सही बुद्धि है जिसका सच्चा फल उसका अनकही बाते जानना है ।
काश हमारी जिंदगी में भी कोई अनकही बाते जाननेवाला होता तो कितना अच्छा होता न ? सभी ने यही सोचा क्या?
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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