*५९५ . ।। वृत्तिः ।।*
*अहो सुसदृशी वृत्तिः*
*मर्दलस्य खलस्य च ।*
*यावन्मुखगतं पिण्डं*
*तावन्मधुरभाषणं ।।*
मृदंग आणि दुष्ट व्यक्ती यांची वृत्ती एकसारखीच असते . मृदंगावर पीठाचा लेप लावल्यानंतरच त्यातून मधुर ध्वनी बाहेर पडतो आणि दुष्ट व्यक्तीला जोपर्यंत खाऊ-पिऊ घालावे तो पर्यंतच ती गोड बोलते .
मृदंग और दुष्ट व्यक्ति की वृत्ति एक जैसी ही होती हैं । मृदंग पर आटे का लेप लगाने पर ही उस की ध्वनि मीठी हो जाती हैं और दुष्ट व्यक्ति को जब तक खिलाते-पिलाते रहो , तभी तक वह मीठा बोलता हैं ।
What a simila rity there is between the mridangam the percussion and the hypocritical people : Just as the percussion instrument sounds well as long as it is smeared by paste , the lowly speak pleasantly only as long as they are pampered .
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