॥ ॐ ॥
| सुभाषित रसास्वादः || [३३५]
'' भाग्यमहिमा ''
'' दाता बलिः प्रार्थयिता च विष्णुः,र्दानं भुवो वाजिमखस्य कालः |
नमोऽस्तु तस्यै भवितव्यतायै, यस्याः फलं बन्धनमेव जातं || ''
अर्थ—बलिराजा के समान दानी, विष्णु भगवान जैसा याचक, पृथ्वी का दान तथा अश्वमेध का पवित्र काल, इतना सबकुछ होने पर भी बलि राजा बाँध गये , भाग्य को नमस्कार हें |
गूढार्थ—सब कुछ शुभपुण्यफलदायक वातावरण और दानी और याचक इतने महान होने के बाद भी बलि भाग्य के कारण बंधित हो गये या बंधन में पड गये |
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डॉ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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