Friday, September 25, 2020

Released arrow comes back, whereas rope goes in air - Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* " 
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   " *राजस्तुति* " ( १३५ )
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   *श्लोक*---
    " अपूर्वेयं  धनुर्विद्या  भवतः  शिक्षिता  कुतः ?
      मार्गणौघः समभ्येति  गुणो  याति  दिगन्तराम् " ।।
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*अर्थ*----
  धनुरर्धने  बाण  छोडा  तो  बाण  बहुत  दूर  तक  जाता  है ।  लेकीन  धनुष्य  की  रस्सी  जगह  पर  ही  रहती  है ।  किन्तु  हे  राजा ! यह  अपूर्व  धनुर्विद्या  आपने  कहाँ  से  सिखी ?  जिसमें   बाण  पिछे  वापस  आ  जाता  है  और  रस्सी  दिगंत में  चली  जाती  है ? 
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*गूढ़ार्थ*---
 मार्गण= बाण और  याचक । गुण = धनुष्य  की  रस्सी और  सद्गुण = गुणों  की किर्ति । 
राजा  को  कोई  कवी  कह  रहा  है  कि -- आपके  दातृत्व का लक्ष्यवेध  ऐसा  है  कि  याचक  बारंबार  आपके  पास  आते  है  और  आपकी  गुणकिर्ति  दिगंतर  में  जाती  है । 
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /  महाराष्ट्र 
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