|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *सामान्यनीति* " ( २१५ )
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*श्लोक*----
" गावो गन्धेन पश्यन्ति , वेदैः पश्यन्ति वै द्विजाः ।
चारैः पश्यन्ति राजानः चक्षुर्भ्याम इतरे जनाः ।। " ( पञ्चतन्त्र )
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*अर्थ*----
गन्ध से गायों को समझता है । वेदों की साहय्यता से ब्राह्मण को और राजा को गुप्तचरों / गुप्तहेरों से दिखता है किन्तु सामान्य जनों को दोनो आंखो से ही दिखता है ।
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*गूढ़ार्थ*-----
सुभाषितकार ने हमे गाय , ब्राह्मण और राजा तीनों का वैशिष्ट्य बताया है । गाय को सूंघने के बाद ही अच्छे बुरे की पहचान होती है , ब्राह्मण को वेदों से ही जाना जाता है या ब्राह्मण की आंखे ही वेद है । और राजा की आंखे उसके गुप्तहेर और हम सामान्य मनुष्य तो अपने दोनो आंखो से ही देखकर पहचान कराता है।
हमारे पास असामान्यत्व नही है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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