Tuesday, July 14, 2020

Glory of Vidya - Sanskrit subhashitam

||ॐ||
"सुभाषित रसास्वाद"
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" *विद्याप्रशंसा*। (२०२ )
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अपूर्वः  कोऽपि  कोशोऽयं  विद्यते  तव  भारति।
व्ययतो  वृद्धिमायाति  क्षयमायाति  संचयात्"।।
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अर्थ---
हे सरस्वती  देवते !  आपका  कोष  सही  में  अजब  ही  है।  इस  कोष  से  जितना  धन  खर्च  करेंगे  उतना  ही  आपका  खजाना  बढ़ेगा  और  इस  धन  का  संचय  करेंगे  तो  यह  नष्ट  होगा ।
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गुढार्थ-- ज्ञानरुप  धन  देने  से  हमेशा   ही  देनेवाले  के  ज्ञान  में  वृद्धि  होती  है ।  और  अगर  ज्ञानरुपी  धन  ना  बांटे  तो  और  अपने  पास  ही  संभालकर  रखे  तो  उसका  विस्मरण  होकर  नाश  होता  है।
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卐卐ॐॐ卐卐
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर  
पुणे/ महाराष्ट्र 
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