Wednesday, July 22, 2020

Believing a doctor,God,Teertha,medicine,guru - Sanskrit subhashitam

||ॐ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *सामान्यनीति* " ( १९८ )
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"देवे  तीर्थे  द्विजे  मन्त्रे  दैवज्ञे  भेषजे  गुरौ।
यादृशी  भावना  यस्य  सिद्धिर्भवति  तादृशी"।। ( १८१ )
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अर्थ---देव,  तिर्थक्षेत्र,  ब्राह्मण,  मन्त्र ,  ज्योतिषी,  और  गुरु  इन  सब  के  बारे  में  आपके  मन  में   जो  भावना  आयेगी   वैसी  ही  सिद्धी  उसे  प्राप्त  होगी।
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सुभाषितकार  ने  मनुष्य  का  मानसशास्त्र  यहाँ  पर  बहुत  सुन्दर  तरीके  से  बताया है। 
मनुष्य  देव  को  नमन  तो  करता  है  पर  मेरा  कार्य  संपन्न  होगा  की  नही  होगा  इस  दुविधा  में ।
वैसे  वह  तिर्थक्षेत्र  तो  जाता  पर  भावना  भक्ति  न  होकर  निसर्ग  दर्शन  वहाँ  पे  मिलने  वाली  अच्छी  चीजें  और  वहाँ  की  सुविधा  इसपर  ही  उसका  ध्यान  रहता  है।
पूजा  के  लिए  ब्राह्मण  को  घर  पर  बुलाता  है  और  ध्यान  कहीं  ओर ।वैसे  सचमुच  इस  पूजा  की  इतनी  दक्षिणा  है क्या? कहीं  यह  मुझे  उल्लू तो  नही  बना रहा? 
किसीके  के  कहने  पर  मन्त्र  जाप  शुरू  तो  करता  है  पर  थोडे  दिन के  बाद  सातत्य  नही  रहता  क्यों कि  मन  की  चलबिचल।
ज्योतिष  के  पास  चला  तो  जाता  है  किन्तु  यह   ज्योतिषी  कितना  खरा कितना  झुठा ऐसी शंका  मन  मे  रखकर  उसने  जो  उपाय  बताये  उससे  मेरा  सही  में  लाभ  होगा की नही?
डाक्टर/ वैद्य  के  पास  भी यही  हाल  होता है । बापरे!  कितनी  फीस  लेता  है ।  इसकी  दवाई  मुझपर  असर  करेगी  की नही?
सबसे  आखरी  मन  की  शांती  के  लिए  गुरु  भी  खोज  लेता  है लेकिन  सच  में  मुझे  शांती  मिलेगी? मुझे  मोक्ष  मिलेगा? यह  शंका  कायम  उसके  मन  में  रहती  है।
इसलिए  सुभाषितकार  ने  स्पष्ट  ही  कह  दिया  कि  जैसा  जिसका  भाव  वैसा  उसको  फल  मिलेगा। 
पूरी  तरह से  किस पर  विश्वास  करना  मनुष्य  स्वभाव  ही  नही और मन तो  प्रमाथिवत  चञ्चल  ही  कहा  गया।   
कितने  कम  शब्दों  में  मनुष्य  के  मानसिकता  का  विश्लेषण  यहाँ  पर सुभाषितकार  ने  किया  है, वह  समझने  लायक  है।
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे / महाराष्ट्र 
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