Tuesday, June 30, 2020

Paatu vah - sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* " 
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   " *पातु वः* " ( १७६ )
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   *श्लोक*----
    " ह्रदयं  कौत्सुभोद्भासि  हरेः  पुष्णातु  नः  श्रियम् ।
     राधाप्रवेशरोधाय  दत्तमुद्रमिव  श्रिया  " ।।
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*अर्थ*----
    राधा ( अपनी  सौत ) विष्णु  के  ह्रदय  में  जा  नही  सके  इसलिए  लक्ष्मी  ने  जैसे  कौत्सुभरूपी  मुद्रा  ही  जिस   ह्रदय  पर  अंकित  कर  दी  है ऐसा  कौत्सुभ रत्न  से  शोभित  होने  वाला  श्री भगवान  विष्णु  का  ह्रदय  हमे श्री  मतलब  संपत्ति  देवे ।
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*गूढ़ार्थ*----
   सुभाषितकार  ने  कितनी  खुबसूरती  से  यहाँ  स्त्रियों  के  स्वभाव  का  वर्णन  किया  है न ?  स्त्री  जिसे  सच्चा  प्रेम  करती  है  उस  पर  पूर्णाधिकार  के  साथ  एकाधिकार  भी  चाहती  है ।  इस  स्त्री  स्वभाव  से  लक्ष्मी  भी  नही  छूटी ।  क्या  आप  मेरे  मत  से  सहमत  हो ?
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर  
पुणे  /   महाराष्ट्र 
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