|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *राजनीति* " ( ५९ )
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*श्लोक*----
" सकृज्जल्पन्ति राजानः सकृज्जल्पन्ति पंडिताः ।
सकृत्कन्याः प्रदीयन्ते त्रीण्येतानि सकृत् सकृत् "।।
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" *अर्थ* "-----
राजा एक बार ही बोलता है , पंडित भी एक ही बार बोलता है और कन्यादान भी एक ही बार होता है । यह तीनों चीजें केवल एक ही बार होती है ।
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" *गूढ़ार्थ* "------
राजा किसी भी चीज के लिए एक बार ही आदेश देता है । वह बार-बार अपना आदेश पलट नही सकता । नही तो प्रजा का उसपर से विश्वास उठ जायेगा ।
पंडित भी अपना वचन एक ही बार बोलता है । जिसे आप्तवाक्य प्रमाण के तौर पर देखा जाता है । आप्तवाक्य या पंडितों का बोलना भी बदलता नही है । ( ध्यातव्य-- पेशवे के न्यायाधीश श्री. रामशास्त्री प्रभुणे )
कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है । एक बार गोत्रोच्चार के साथ वर के गोत्र में वधू का गोत्र मिलाकर उसे दान दिया जाता है।
फिर उसके उपर मातृगृह का कोई अधिकार नही रहता ।
( ध्यातव्य--- जिस घर में डोली जायेगी उसी घर से अर्थी उठेगी । यह वचन )
कन्यादान के संदर्भ में काफी लोगों में मतभेद हो सकते है । आधुनिक परिवेश में बहुत लोगों यह बात रास नही आयेगी पर यह बाते हमारे शास्त्र में लिखकर रखी गयी ।
यह तीनों बाते पत्थर की लकीर है ऐसा राजा को कहा जा रहा है।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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