Friday, May 1, 2020

Satanam vaak bhushanam bhushanam- Sanskrit Subhashitam

|| *ॐ* ||
          " *सुभाषितरसास्वादः* "
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           " *सुवाक्यनीति* " ( ८४ )
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*श्लोक*----
   " केयूरा  न  विभूषयन्ति  पुरुषं  हारा  न  चन्द्रोज्ज्वलाः 
   न  स्नानं  न  विलेपनं  न  कुसुमं  नालङ्कृता  मूर्धजाः ।
     वाण्येका  समलङ्करोति  पुरुषं  या  संस्कृता  धार्यते
     क्षीयन्ते  खलु  भूषणानि  सततं  वाग्भूषणं  भूषणम् ।।
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*अर्थ*----
बाजुबंद  पुरुष  को  शोभित  नही  करते  और  न  ही  चन्द्रमा  के  समान  उज्ज्वल  हार,  न  स्नान ,  न  स्नान ,  न  चन्दन ,  न  फूल  और  न  सजे  हुए  केश  ही  शोभा  बढ़ाते  है ।  केवल  सुसंस्कृत  प्रकार  से  धारण  की  हुई  एक   वाणी  ही  उसकी  सुन्दर  प्रकार  से  शोभा  बढ़ाती  है ।
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*गूढार्थ*-----
सुभाषितकार  ने  बहुत  ही सुन्दर  तरीके  से  विद्वान  की  व्याख्या  बतायी  है ।  की  विद्वान  के  साधारण  आभूषण  नष्ट  हो  जाते  है , वाणी  ही  उसका  सनातन  आभूषण  है ।
   यहाँ  पर  वाणी = मीठी  और  मधुर  वाणी । ज्ञानयुक्त  संयत  वाणी।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर  
पुणे /   महाराष्ट्र 
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