Friday, May 29, 2020

Contentment- Sanskrit Subhashitam

|| *ॐ* ||
   " *सुभाषितरसास्वादः* "
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     " *तुष्टि* " ( १७९ )
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    *श्लोक*----
      " गन्धाढ्यां  नवमल्लिकां  मधुकरस्त्यक्त्वा  गतो  यूथिकां ।
       तां  दृष्ट्वाऽऽशु  गतः  चन्दनवनं  पश्चात्सरोजं  गतः ।।
       बद्धस्तत्र  निशाकरेण  सहसा  रोदित्यसौ  मन्दधीः।
       सन्तोषेण  विना  पराभवपदं  प्राप्नोति  सर्वो  जनाः " ।।
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    *अर्थ*----
    सुगंधी  नवमल्लिका  को  छोड़कर  भ्रमर  युथिका ( जुही ) के  पास  गया  उसको  देखा  न  देखा  तो  चन्दनवन  में  गया  और  वहाँ  से  तुरंत  कमल की  तरफ  गया  किन्तु  अचानक  रात  होने  से  कमल  सिकुड  गया  उसकी  पंखुड़ियां  बंद  हो  गयी  और  भ्रमर  उसमें  ही  अटक  गया । और  फिर  यह  मन्द  बुद्धि  रोने  लगा ।  संतोष   अगर  नही  रहता  है  तो  सब को  ही  पराभूत  होने  की  नौबत  आती  है ।  
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    *गूढ़ार्थ*-----
  भ्रमर  के  उदाहरण  से  सुभाषितकार ने   समाज  के  लालची  लोगों  का  चरित्र  चित्रण  यहाँ  पर  किया  है ।  किसी  किसी  को  एक  जगह  आराम  ही  नही  रहता  और  यहाँ  से  वहाँ  भटकते  रहते  है  ऐसे  लोगों  का अन्त भी  हमेशा  भीषण  ही होता  है ।  जीवन  में  अगर  संतोष  नही  होगा  तो  पराभूत  होना  ही  पडता  है ।  प्रेम  हो  या  पैसा  जीवन  में  संतोष  अति आवश्यक  ही  है ।  
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /   महाराष्ट्र 
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