Friday, April 10, 2020

Short lived our life - Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
      " *सुभाषितरसास्वादः* "
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      " *जीवननीति* " ( १३० )
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    *श्लोक*----
    " क्षणं  बालो  भूत्वा  क्षणमपि  युवा  कामरसिकः 
      क्षणं  वित्तैर्हीनः  क्षणमपि  च  संपूर्णविभवः ।
      जराजीर्णैरङ्गैर्नट   इव  वलीमण्डिततनु---
       र्नरः संसारान्ते  विशति  यमधानीजवनिकाम् " ।।
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*अर्थ*---
  मनुष्य  का  जीवन  नाटक  है  और  मनुष्य  नट ।  वह  एक  पल  में  देखो  तो  बाल  ; एक  क्षण  में  रंगेल  मनुष्य ; अगले  ही  पल  भिकारी , तो अगले  ही पल धनसंपन्न ! और  आखिर  में  झुरियो  वाला  वृद्ध  और  उसके  भी आगे  बहुत  ज्यादा  थका हुआ  बूढ़ा  बन  जाता  है । 
और  इस  तरह  से  इस  संसाररूपी  नाटक  के  अन्त  में  वह  यमपुरी के  पर्दे  के  आड  चला  जाता  है ।
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*गूढ़ार्थ*----
       जीवनरूपी  नाटक  का  कितना  सत्य  और  यथार्थ  वर्णन  सुभाषितकार  ने  किया  है  न ?  आखिर  हम  सब  इस  रंगमञ्च  की  कठपुतलियां  तो  है  जिसकी  डोर  किसी  और  के  हाथ  में  होती  है ।
लेकीन  फिर  भी  हम  कितने  अहंकार  और  गुरूर  से  जीवन  जिते  है ।
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 *卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ.  वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /  महाराष्ट्र 
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