Thursday, April 16, 2020

Samsaar - Sanskrit sloka

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *संसारमहिमा* " ( १७४ )
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   *श्लोक*----
    " यत्रानेके  क्वचिदपि  गृहे  तत्र  तिष्ठत्यथैको ।
     यत्राप्येकस्तदनु  बहवस्तत्र  नैकोऽपि  चान्ते ।।
    इत्थं  चेमौ  रजनिदिवसौ  दोलायन्द्वाविवाक्षौ ।
   कालः काल्या  भुवनफलके  क्रीडति  प्राणिसारैः " ।।
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   *अर्थ*---
    शतरंज  के  पट  पर  शुरू  में  अनेक  प्यादे  होते  है  पर  उसमें  से  आख़िर  तक  एक ही  टिकी  रहती  है । शुरूआत  में  एक  फिर  बीच  में  एक  की  घर  में  अनेक  प्यादी  आ  जाती  है ।  और  आख़िर  में  एक  ही  बचती  है  या  एक  भी  नही  बचती ।  ऐसा  ही  तो  संसार  का  खेल ( सारीपाट )  है ।  मानव  यह  प्यादी  है  और  रात  और  दिन  यह  पासे  फेंकते  हुए  काल  यह  मनमुराद  खेलता  है ।
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*गूढ़ार्थ*----
   मानव  जीवन  की  वास्तविकता  यहाँ  पर  बतायी  गयी  है ।  मनुष्य  यह संसार  के  सारीपाट पर  प्यादा  ही  है  और  रात , दिन  यह  पासे  है  और  काल  यह  पांसे  फेंकते  हुए  काली  के  साथ  खेलता  रहता  है ।  मनुष्य  रूपी  प्यादे  हिलते  रहते  है  और  एक  एक  करके  कम  होते  रहते  है ।
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /   महाराष्ट्र 
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