|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *नवरसवर्णनम्* " ( १६१ )
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" *अद्भुतरसः* "
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*श्लोक*----
" एष वन्ध्यासुतो याति खपुष्पकृतशेखरः ।
मृगतृष्णाम्भसि स्नातः शशशृङ्गधनुर्धरः " ।।
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*अर्थ*----
अहो , कितना आश्चर्य ! यह देखो वंध्या स्त्री का पुत्र जा रहा है । उसके बालों में आकाशपुष्प की माला है और उसने मृगतृष्णा में स्नान किया है । और उसके हाथ में खरगोश के शिंग से तैय्यार किया हुआ धनुष्य है । सब आश्चर्यकारक ही है ।
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*गूढ़ार्थ*----
वंध्या स्त्री का पुत्र , आकाश शून्य में उगा पुष्प , मृगतृष्णा का जल और खरगोश के सींग का धनुष्य । सब अशक्य ही है ।
यह अद्भुत रस का उदाहरण भी अद्भुत ही है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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