|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *हंस -अन्योक्ति* " (९४ )
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*श्लोक*---
" अपसरणमेव शरणं मौनं वा तत्र राजहंसस्य ।
कटु रटति निकटवर्ती वाचाटाष्टिट्टिभो यत्र " ।। ( शार्ङ्गधरपद्धतिः)
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*अर्थ*---
जब चिल्लानेवाली टिटवी अपने उच्च कर्णकटू वाणीसे पास में ही चिल्लाती है तब राजहंस ने क्या करना चाहिये ?
वहाँ से दूर निकल जाना चाहिये या फिर स्वस्थ रहना चाहिए ?
इसके अलावा और क्या उपाय है ?
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*गूढ़ार्थ*----
मूर्ख मनुष्य जब भी वादविवाद या झगडा करते है तब विद्वान ने क्या करना चाहिए? एक तो उस स्थान से उसने दूर चले जाना चाहिए या मौन रहकर शांती से सब देखना चाहिए ।
हंस और टिटवी के दृष्टान्त से सुभाषितकार ने हमे बहुत ही अच्छी सलाह दी है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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