Friday, March 27, 2020

Refraining totally from actions is not Sanyasa - Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
    " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *मोक्षनीति* " ( १३१ )
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*श्लोक*---
  " यदि  संन्यसतः  सिद्धिं  राजन्किश्चिदवाप्नुयात्  ।
    पर्वताश्च  द्रुमाश्चैव  क्षिप्रं  सिद्धिमवाप्नुयुः " ।।
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  *अर्थ*---
यदि  केवल  संन्यास  लेने  से  ( कर्मत्याग  करने  से ) हे राजन ! किसिको  मोक्ष  नही  मिलता ।  अगर  ऐसा  होता  तो  पर्वत  और  पेड़ों  को  बहुत  पहले  ही  मोक्ष  मिल चुका  होता ।
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*गूढ़ार्थ*---
  संन्यास  और  कर्मयोग दोनो  ही  श्रेष्ठ  है किन्तु  उसमें  भी  कर्मयोग  ही  श्रेष्ठ  माना  गया है । कर्मयोग  से बचने  की बजाय  उसे  स्वीकार  करो  । अन्यथा  तो  वृक्ष  और  पर्वतों  का तप  सर्वश्रेष्ठ  माना  गया  है  किन्तु  तो  भी  उन्हे  मोक्ष  नही  मिलता  यह  उदाहरण  से  सुभाषितकार  ने  कर्म की  श्रेष्ठता  कही  है ।  
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /   महाराष्ट्र 
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