|| *ॐ* ||
     " *सुभाषितरसास्वादः* "
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    " *कविनीति* " ( १२२ )
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  *श्लोक*----
  " लङ्कापतेः संकुचितं  यशो  यद्  
    यत्कीर्तिपात्रं  रघुराजपुत्रः ।
    स  सर्व  एवादिकवेः  प्रभावो 
    न  कोपनीयाः  कवयः  क्षितीन्द्रैः " ।।
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*अर्थ*----
रावण  का  यश  , बहुत  कम  करके , रामचरित्र  को  कीर्तिपात्र  किया ।
  यह  सब  आदिकवि  वाल्मीकि  ( कर्तुमकर्तुम् ) ऐसा  प्रभाव  है ।
इसलिए  हे राजा ! कवियों  का  क्रोध  का  पात्र  मत  बनो ।
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*गूढ़ार्थ*----
 किसी  राजा  के  दरबार  में घटी हुई  यह  घटना  है ।  राजा  कवी का  सम्मान  नही  कर  रहा  या  उसको  दरबार में  उचित स्थान  नही  दे  रहा है।
तब  वह कवी  कह  रहा  है  कि-- हे राजन! आप   आदिकवी  वाल्मीकि  के  काव्य  की  शक्ति  नही  देखी  क्या ?  जिसने  त्रिखण्ड  में  जिसका  यश  फैला  था ऐसे  रावण  का  यश  बहुत  ही  कम  कर  दिया  और  जिसको  पहले  कोई  नही  जानता  था  ऐसे  एक  सादे  से  मनुष्य  को  अजरामर  बना  दिया  आज भी  श्रीराम  के  चरित्र  की  दुहाई  दी  जाती  है ।
यह  सब  वाल्मीकि  के *कर्तुमकर्तुम* का  ही  प्रभाव है ।
इसलिए  हे राजा ! आप  कभी  भूलकर  भी  किसी  कवी  का  अपमान  मत  करना ।  और  उनके  कोपभाजन  का  पात्र  तो  बिलकुल  ही  नही  बनना।
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /  महाराष्ट्र 
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