|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *समस्यापूर्ति* " ( १२६ )
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*श्लोक*----
" प्रहारितोऽपि मार्जारस्तमाखुं नैव मुञ्चति ।
तथैव बोधितो मूर्खस्तमाखुं नैव मुञ्चति " ।।
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*अर्थ*---
मारा तो भी मार्जार ( बिल्ली ) तंबाखु छोडती नही । और कितना भी उपदेश करो तो भी मूर्ख मनुष्य उस चूहे को छोड़ता नही है ।
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*गूढ़ार्थ*-----
पहिले चरण में तमाखु इस शब्द का संधिविग्रह किया तो ---
तम + आखु । कितना भी मारा तो भी मार्जार उस चूहे को छोडती नही है ।
दुसरे चरण में *तमाखु* का संधिविग्रह नही किया तो ऐसा अर्थ निकल रहा है --- कितना भी उपदेश करो लेकीन मूर्ख मनुष्य तंबाखु छोड़ता नही है । ऐसा अर्थ हो रहा है ।
इस तरह से समस्या की पूर्ति हो रही है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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