Friday, February 7, 2020

Take these things without harming - sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
              " *सुभाषितरसास्वादः* "
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             " *लक्षणनीति* " (६५ )
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*श्लोक*----
    "  मधुपा  मधुं ,  वृक्षफलं,  तृणे  धान्यं  ग्रहणम् ।
      अनिवार्यं ,  साधयेत्  विनाक्रौर्य॔  दत्वा  रक्षणक्रमः "।।
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*अर्थ*----
 मधमाशी  से  मध , वृक्ष  से  फल और  तृण  से  धान्य  यह  लेना  ही  पडता  है ।  पर  यह  सब  लेते  समय  उनको  संरक्षण  देकर  और  क्रूरता ना  करते  हुए  लेना  श्रेयस्कर  होता  है ।
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*गूढ़ार्थ*-----
' जीवो  जीवस्य  जीवनम् '  यही  सृष्टि  का  न्याय  है ।  प्रत्येक  मनुष्य  को  जीने  के लिए  अन्न  लगता  ही  है ,  और  उसके  लिए  प्राणिसृष्टि  वनस्पतीसृष्टि  पे  मुख्यतः  अवलंबून  है ।  जो  अनिवार्य  है  वह  लेना  ही  पडता  है  यह  निर्विवाद  है ।  किन्तु  वह  लेते  वक्त  जिनसे  हम  ले  रहे  है  उनका  संरक्षण  करना  आवश्यक  है  उनसे  खिंचके  या  बल  से  नही  लेना  चाहिए ।  सुभाषितकार  ने  सृष्टि  का  ऋण  मानने  का पाठ  हमे  पढाया  है । पर्यावरण की  रक्षा  तो  आजकल  अति  आवश्यक  है ।
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे /   महाराष्ट्र 
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