|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *व्यवहारनीति* " ( ६४ )
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*श्लोक*----
" युद्धं च प्रातरुत्थानं बांधवैः सह भोजनम् ।
स्वनारी रक्षणं चैव शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात् " ।।
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*अर्थ*----
युद्ध , प्रातःकाल में जल्दी उठना , बंधुजनैसह भोजन और अपनी पत्नी का संरक्षण यह चार चीजे मुर्गे से सिखनी चाहिए ।
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*गूढ़ार्थ*----
१-- मुर्गे की लड़ाई जब शुरू रहती है तब मुर्गा पुरी ताकद से लडता है भले उसका शरीर लहू-लुहान हो जाये । वह शत्रु पर त्वेष से हमला करता है । जब तक वह जितता नही या उसका नाइलाज नही होता।
यह सब एक अच्छे योद्धा के गुण है ।
२--- सुबह मुर्गा सूर्योदय के पूर्व ही जाग जाता है । और बांग देकर सबको जगाता है । आलसी के जैसा वह सोता नही है ।
३-- कही उसको धान्य या खाने की चीजें दिखी तो वह कभी भी अकेला नही खाता तो अपने ज्ञातीबांधव के साथ मिलकर ही धान्य चुगते है । सहकुटूंब सहबांधव के साथ ही वह हमेशा भोजन करता है । अपनापन व्यक्त करनेवाला और जिम्मेदारी निभाने वाला यह गुण यहाँ पर व्यक्त होता है ।
४---- कहीं भी वह दाना चुग रहा होगा तो भी हमेशा ही अतिसावध
रहता है और अपनी पत्नी का संरक्षण करने में तत्पर रहता है ।
यह चारो गुण मनुष्य को भी व्यवहारोपयोगी और समाजोपयोगी है ।
यह चार गुण हमे मुर्गे से सिखने चाहिए ।
और हमारे महान पूर्वजों को नमन जिन्होने इतनी बारकीसे निरिक्षण करके यह सब बाते हमारे लिए लिख कर रखी।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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