Wednesday, February 26, 2020

Desire the mysterious chain - Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
      " *सुभाषितरसास्वादः* "
----------------------------------------------------------------------------------
   " *तत्त्वज्ञाननीति* " ( ९६)
--------------------------------------------------------------------------------
   *श्लोक*-----
   " आशा  नाम  मनुष्याणां  काचिदाश्चर्य  शृङ्खला ।
     यया  बद्धाः  प्रधावन्ति , मुक्ताः  तिष्ठन्ति  पंगुवत् " ।।
---------------------------------------------------------------------------------
  *अर्थ*----
आशा  नाम  की  मनुष्यों  के  लिये  आश्चर्यकारक  शृखंला  है ।
आशा  से  बंधा  हुआ  व्यक्ति  भागता  है  और  उससे  जो  मुक्त  हुआ  वह  पंगुवत  खडे  ही  रहता  है ।
---------------------------------------------------------------------------------------
*गूढ़ार्थ*----
 यहाँ  पर सुभाषितकार ने  जगत  का  एक  वर्म  बताया  है ।
मनुष्य  हमेशा  आशापर  ही  जीता  है । अपनी  आशा -- आकांक्षा  पूरी  करने  के  लिए  ही वह  जीता  है । इसलिये  उसकी  भागादौडी  चलती  है ।
ऋषी--मुनी , योगी , संत  यह  सब  लोग  आशा-- आकांक्षा  के  पार  हो  चुके  होते  है  उनको  आशापाश  रोक  नही  सकता  इसलिए  वह  स्थिर  रहते  है ।  
श्रीमद्भगवद्गीता में  कहा  ही  गया  है की---
" कर्मण्येवाधिकारस्ते  मा  फलेषु  कदाचन "।
मतलब  मनुष्य  का  कर्म  और  कर्तव्य  पर  अधिकार  होता  है  उसके  फलपर  नही ।  इस  विचारसरणी  से  हम  आशापाश  कम  कर  सकते  है।
अलिप्तता  आकर  मनुष्य  शांत  और  स्थिर  रहता  है । 
------------------------------------------------------------------------------
*卐卐ॐॐ卐卐*
-------------------------
डाॅ.वर्षा प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  /   महाराष्ट्र 
------------------------------------------
🐇🐇🐇🐇🐇🐇🐇🐇🐇🐇🐇🐇🐇🐇🐇🐇

No comments:

Post a Comment