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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *प्रहेलिका* " ( कूटप्रश्न) (९३ )
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*श्लोक*---
" रागी भिनति निद्रां तल्पं जहाति निष्ठुरं न दशति ।
चतुरे किं प्राणेशो नहि नहि सखि मत्कुणव्रातः " ।।
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*अर्थ*---
चतुर स्त्रिये , अनुरक्त होकर रात्रि की निद्रा भंग करनेवाला , बिछानेपर घुमनेवाला , निष्ठूर नही किन्तु काटकर उत्तेजित करनेवाला क्या यह तेरा प्रियकर है ?
नहि नहि वह तो खटमलों ( ढेकुण) का समूह है ।
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*गूढार्थ*----
खटमल और प्रियकर इनके वैशिष्ट्य में का साम्य ध्यान में रखकर प्रस्तुत श्लोक की रचना की गयी है ।
रागी= अनुरागी और रक्तवर्णी ।
खटमल रक्त पीकर तांबडा हो जाता है ।
तल्प= बिछाना और पत्नी ।
खटमल रक्तपिपासू होने के कारण रात में काटकर निंद ख़राब करता है । और बिछाना यह उसका कार्यक्षेत्र है , उसके उपर वह घुमता रहता है वही उसका कार्यक्षेत्र है । निष्ठूरता उसका स्वभावधर्म नही है।
किन्तु रक्त पीने के लिए वह मनुष्य के शरीर को काटता है ।
है न संस्कृत साहित्य की गंमंत ??????
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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