*ॐ सुरभारत्यै नमः॥ वन्दे मातरम् ॥*
*(तन् -८ उ०- फैलाना)*
*तनोति-तनुते*
१-रविः प्रकाशं तनोति।=सूर्य प्रकाश फैलाता है।
२-सः तल्पं तनोति।=वह बिस्तर फैलाता है।
३-भवान् किं तनुते?=आप क्या फैलाते हैं?
*तनोतु-तनुताम्*
४-ज्ञानी ज्ञानं तनोतु।=ज्ञानी ज्ञान फैलाये।
५-कश्चित् कुविचारं न तनोतु।=कोई कुविचार न फैलाये।
६-भवती स्नेहभावं तनुताम्।=आप प्रेमभाव फैलायें।
*अतनोत्-अतनुत*
७-एषः करं न अतनोत्।=इसने हाथ नहीं फैलाया।
८-इयं वस्त्राणि अतनोत्।=इसने कपड़े फैलाये।
९-एतत् कः अतनुत?=यह कौन फैलाया?
*तनुयात्-तन्वीत*
१०-सः शिवं तनुयात्।=उसे शुभ फैलाना चाहिये।
११-भवान् अपि तनुयात्।=आपको भी फैलाना चाहिये।
१२-आचार्यः संस्कृतज्ञानं तन्वीत।=आचार्य को संस्कृतज्ञान फैलाना चाहिये।
*तनिष्यति-तनिष्यते*
१३-सः किं तनिष्यति?=वह क्या फैलायेगा।
१४-एषा मिथ्या न तनिष्यते।=यह झूँठ नहीं फैलायेगी।
_■[वाक्य ३,६,९,१२और१४ आत्मनेपदी]■_
*■कर्मवाच्य■*
१५-मया/त्वया/तया/भवत्या सुविचारः *तायते* ।
(मेरे/तुम्हारे/उसके/आपके द्वारा सुन्दर विचार फैलाया जाता है)
१६-भवता/तेन/एतया किं *तन्यते*?
(आपके/उसके/इसके द्वारा क्या फैलाया जाता है)
*जयतु संस्कृतम्॥ जयतु भारतम्॥*
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