|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *प्रहेलिका* " ( कोडे ) ( ७४ )
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*श्लोक*----
" पञ्चदशीरजनीसमा तारामणिभूषणापि कोकिलवाक् ।
चन्द्रसमा गतवसना हस्तगता स्त्री न मे वीणा " ।।
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*अर्थ*----
पौर्णिमा के चंद्रसमान मुख वाली , तारों के जैसे चमकने वाली, मणियों से सुशोभित ऐसी और कोकिल के जैसे मधुर वाणी जिसकी है किन्तु वस्त्रों का अभाव वाली ऐसी यह स्त्री कौन है ?
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*गूढ़ार्थ*----
न स्त्री , मे वीणा ।
प्रश्नेषु गुप्तानि तदुत्तराणि ।
प्रश्नेषु गुप्तानि तदुत्तराणि ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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